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Written By समय ताम्रकर

जय हो: फिल्म समीक्षा

जय हो: फिल्म समीक्षा -
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'आम आदमी सोता हुआ शेर है, ऊंगली मत करना, जाग जाएगा तो चीर-फाड़ कर देगा' - यह संवाद बोलते हुए सलमान खान आम आदमी की ताकत और महत्ता को रेखांकित करते हैं। वैसे आम इन दिनों खास बना हुआ है। नेता से लेकर अभिनेता तक उसको महत्व दे रहे हैं।

बहरहाल, सलमान खाकी ताजा फिल्म 'जय हो' में बताया गया है कि देश सेवा के लिए जरूरी नहीं है कि सेना में भर्ती हुआ जाए या नेता बना जाए। इसके बिना भी आप देश के लिए काम कर सकते हैं। इसके साथ एक ओर अच्छी बात फिल्म में कही गई है। कभी कोई आपकी मदद करें तो उसे 'धन्यवाद' देने के बजाय वादा करें कि आप भी तीन लोगों की मदद करेंगे। इस तरह से एक अच्‍छी चेन चलने लगी और दुनिया को बेहतर बनाया जा सकता है।

वैसे, तो 'जय हो' एक रूटीन ड्रामा है, लेकिन ये एक-दो बातें इस फिल्म को थोड़ा अलग लुक देती है। यूं भी सलमान खान अगर फिल्म में हो तो ज्यादा एक्सपरिमेंट की गुंजाइश खत्म हो जाती है क्योंकि वे एक 'इमेज' में कैद हैं और दर्शक उन्हें एक खास अंदाज में ही देखना पसंद करते हैं।

आर्मी ऑफिसर जय अग्निहोत्री (सलमान खान) बर्खास्तगी के बाद कार मैकेनिक बन जाता है और गाड़ियों के साथ-साथ लोगों को भी सुधारने लगता है। वह एक ऐसी चेन चलाना चाहता है कि जिससे हर आदमी तीन लोगों की मदद करें। जय अपाहिज लड़की की परीक्षा हॉल में लिखने में मदद करता है, गुंडों से लड़की को बचाता है, चोरी किए हुए बच्चे को उसके मां-बाप के सुपुर्द करता है, फोन पर लड़कियों को परेशान करने वाले को सबक सीखाता है।

अपने मददगार स्वभाव के कारण एक बार उसकी भिड़ंत राज्य के गृह मंत्री दशरथ सिंह (डैनी) और उसके परिवार से हो जाती है। दशरथ सिंह बेहद भ्रष्ट और क्रूर इंसान हैं। वह बहुत ताकतवर है। उसकी ताकत से जय की बहन गीता (तब्बू) डर जाती है और जय पर समझौते का दबाव डालती है। बहन की बात जय मान लेता है, लेकिन जब पानी गले तक आ जाता है तो दशरथ को सबक सीखाने में जय जुट जाता है।

ए. मुरुगदास द्वारा लिखी गई कहानी मूलत: जय बनाम दशरथ की है, जिसमें कुछ सामाजिक संदेश का तड़का लगाया गया है। इंटरवल तक फिल्म को रोमांस, गाने, कॉमेडी और एक्शन के सहारे बढ़ाया गया है। इंटरवल के बाद यह फिल्म जय-दशरथ की लड़ाई में परिवर्तित हो जाती है।

सोहेल खान के निर्देशन में कल्पनाशीलता का अभाव नजर आता है। बहुत ही साधारण तरीके से उन्होंने कहानी को परदे पर उतारा है। एक काबिल निर्देशक यह काम ज्यादा अच्छे तरीके से कर सकता था। उनका बहुत सारा काम कोरियोग्राफर, गाने फिल्माने वाले निर्देशक और एक्शन डायरेक्टर ने किया है। फिल्म में 'तीन लोगों' की मदद वाला संदेश इतनी बार बोला जाता है कि कोफ्त होने लगती है।

कॉमेडी के नाम पर ऐसे सीन गढ़े गए हैं, जिन्हें देख शायद ही हंसी आए, लेकिन भावनात्मक दृश्यों ने बात संभाल ली है। जब-जब फिल्म कमजोर होने लगती या झोल खाने लगती, एक इमोशनल सीन आकर दिल को छूता है और फिल्म फिर पटरी पर आ जाती। आम आदमी की ताकत को ध्यान में रखकर कुछ अच्छे सीन गढ़े गए हैं।

सोहेल खान की सबसे बड़ी सफलता यह है कि वे जय का किरदार गढ़ने में कामयाब रहे हैं। जय की परेशानी, बैचेनी और हताशा को दर्शक महसूस करता है। खास बात यह है कि जय के किरदार से दर्शक सीधे फिल्म की शुरुआत से जुड़ जाता है इसलिए फिल्म में उसकी रूचि लगातार बनी रहती है।

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निर्देशक ने सामाजिक संदेश और मसालों में संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है और फिल्म के नाम पर खूब छूट ली है। कई ऐसे सीन हैं जहां सलमान सुपरहीरो बन जाते हैं और दर्जन भर गुंडे तो छोड़िए, सैकड़ों गुंडों से अकेले ही भिड़ जाते हैं। सलमान अगर फिल्म में हैं तो ऐसे दृश्य जरूरी भी हैं क्योंकि उनके फैंस यही देखने के लिए फिल्म में आते हैं। एक फाइट में वे शर्टलेस भी हुए हैं और निश्चित रूप से सीटियां और तालियां इस सीन पर पड़ेगी।

फिल्म समीक्षा का शेष भाग अगले पेज पर...


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'जय हो' तेलुगु फिल्म 'स्टालिन' का हिंदी रिमेक है। 'स्टालिन' में दक्षिण भारतीय सुपरस्टार चिरंजीवी थे और यह फिल्म उनकी इमेज को बेहतर बनाने के लिए बनाई गई थी। 'बीइंग ह्यूमन' सलमान खान की इमेज भी दर्शकों के बीच एक मददगार इंसान के रूप में हैं और उनकी छवि को 'जय' का रोल सूट करता है। ऐसा लगता है कि यह रोल सलमान को ध्यान में रखकर लिखा गया है। 'जय हो' में वे बेहद हैंडसम नजर आए हैं और अपना काम उन्होंने संजीदगी से किया है। एक्शन दृश्यों में वे जबरदस्त रहे हैं। ना केवल वे शेर की तरह गुर्राए हैं बल्कि शेर की तरह उन्होंने खलनायकों को काटा भी है। संतोष शुक्ला और उनके बीच एक्शन सीन बेहद मनोरंजक हैं।

डेजी शाह इस फिल्म की कमजोर कड़ी हैं। वे मिसफिट नजर आईं और उनका अभिनय औसत दर्जे का रहा। उनकी जगह कोई स्थापित या नामी हीरोइन होती तो बेहतर होता। डैनी का रोल उनके कद के मुताबिक नहीं हैं, लेकिन जितना भी है उसमें वे अपनी छाप छोड़ते हैं। सलमान की मां के रूप में नादिरा बब्बर और बहन के रूप में तब्बू का अभिनय प्रभावी है। संतोष शुक्ला भी प्रभावित करते हैं।

फिल्म में सलमान का इतना दबदबा है कि कई नामी कलाकरों की भूमिकाएं बेहद छोटी हो गई हैं। महेश मांजरेकर, पुलकित सम्राट, आदित्य पंचोली, जेनेलिया देशमुख, मुकुल देव, यश टोंक, सना खान, अश्मित पटेल, मोहनीश बहल, विकास बहल, ब्रूना अब्दुल्ला, सुदेश लहरी एक्स्ट्रा कलाकार की तरह नजर आते हैं। सुनील शेट्टी भी छोटे-से रोल में हैं और हद तो ये हो गई कि सैनिक बने सुनील सड़क पर ही टैंक दौड़ाते हैं और गुंडों पर गोलियां चलाते हैं।

फिल्म का संगीत हिट नहीं हो पाया है, लेकिन 'तेरे नैना' और 'फोटोकॉपी' अच्छे बन पड़े हैं। संतोष थुंडियिल की सिनेमाटोग्राफी औसत दर्जे की है। उन्होंने जरूरत से ज्यादा क्लोज-अप फिल्माए हैं। फिल्म के संपादन में कसावट का अभाव है।

'जय हो' एक टाइम पास फिल्म है। साथ ही अच्छी बात यह है कि सलमान ने अपनी पिछली 'फॉर्मूला' फिल्मों से कुछ अलग करने की कोशिश की है, लेकिन जरूरत इस बात की भी है कि वे अरबाज या सोहेल जैसे औसत दर्जे निर्देशकों की बजाय अच्छे निर्देशकों के साथ भी काम करें जो उनके स्टारडम के साथ न्याय कर सकें।

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बैनर : इरोज इंटरनेशनल, सोहेल खान प्रोडक्शन्स
निर्माता : सुनील ए लु्ल्ला, सोहेल खान
निर्देशक : सोहेल खान
संगीत : साजिद-वाजिद, अमाल मलिक
कलाकार : सलमान खान, डेजी शाह, तब्बू, डैनी डेंजोंगपा, नादिरा बब्बर, सुनील शेट्टी, अश्मित पटेल, सना खान, महेश मांजरेकर, समीर खख्खर, संतोष शुक्ला, मोहनीश बहल, जेनेलिया देशमुख, ब्रूना अब्दुल्ला
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 24 मिनट 57 सेकंड
रेटिंग : 2.5/5